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1983 क्रिकेट वर्डकप से पहले भारतीय टीम की कहानी| Indian cricket History

by Ravi pal
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वसे तो क्रिकेट का इतिहास बहुत पुराना है जिसकी शुरुआत वर्ष 1709 से मानी जाती है लेकिन आज यहाँ भारतीय क्रिकेट टीम के बारे में जानेंगे इस टीम का इतिहास क्या है और यह टीम 1983 के वर्डकप तक कैसे पहुची

वर्ष 1932 में भारतीय क्रिकेट टीम ने अपना अंतराष्टीय क्रिकेट खेलना शुरू किया, जब पहली बार इंग्लैंड के दौरे पर गयी उस समय देश को आजादी भी नहीं मिली थी

यहाँ तक इग्लैंड जाने से पहले कई भारतीय क्रिकेटर ऐसे भी थे जिन्होंने इंग्लिश क्रिकेट टीम का भी प्रतिनिधित्व किया। उदाहरण के लिए, पटौदी उनमें से एक थे

रणजीत सिंह जी जिनके नाम पर भारत में प्रमुख घरेलू टूर्नामेंट खेला जाता है, इन्होंने भी इंग्लैंड का प्रतिनिधित्व किया लेकिन 1932 से 1983 तक का भारतीय क्रिकेट अक्सर जीतने वाली टीम की तुलना में यहां और वहां कुछ परेशानियों के साथ व्यक्तिगत योगदान कर्ताओं की यादों के बारे में अधिक था।

उस दौर की भारतीय क्रिकेट टीम को कभी भी ऐसी टीम नहीं माना गया जो किसी भी सीरीज जीत का दावा कर सके या हम ये भी कह सकते है यह ऐसी टीम नहीं थी जिसे वेस्टइंडीज, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसी टीमों के लिए खतरा माना जाता था।

भारतीय क्रिकेट टीम का सच:-

वर्ष 1952-53 में जब भारतीय क्रिकेट टीम ने पाकिस्तान और इंग्लैंड जैसी टीमों को हराने के बाद इतिहास रचना शुरु कर दिया जिस तरह से दिल्ली में पाकिस्तान की टीम को हराया और उसके बाद मद्रास में इंग्लैंड की टीम को हराया |

यहाँ से इस टीम को ऐसा लगने लगा था कि क्रिकेट जैसे खेल में इतिहास रचा जा सकता है

(1952-53) भारत, इंग्लैंड टेस्ट सीरीज:-

यह वह दौर था जब भारत देश आजाद हुआ और पहले ओलपिक के बाद इंग्लैंड क्रिकेट टीम भारत के दौरे पर आती है पहली बार जब भारत ने इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज नहीं हारी विजय हजारे श्रृंखला में भारतीय कप्तान थे

इंग्लैंड द्वारा चौथा टेस्ट जीतने और श्रृंखला में 1-0 की बढ़त लेने के बाद, भारत ने 5 वाँ और अंतिम टेस्ट मैच मद्रास में एक पारी और 8 रन से जीता इस मैच में भारतीय बल्लेबाजों, पोली उमरीगर के नाबाद 130, पंकज रॉय के 111, दत्तू फड़कर के 61 रनों से भारतीय बल्लेबाजों ने अहम योगदान दिया

बाकी बल्लेबाजों ने भी उचित योगदान दिया लेकिन गेंदबाजी का नेतृत्व यादगार रहा, इस मैच में वीनू मांकड़ ने पहली पारी में 8/55 और दूसरी पारी में 4/53 रन देकर12 विकेट लिए

वही गुलाम अहमद ने दूसरी पारी में 4/77 रन बनाए। इस प्रकार श्रृंखला 1-1 की बराबरी पर समाप्त हुई।

(1959-60) भारत, ऑस्ट्रेलिया टेस्ट सीरीज:-

इस समय भारतीय टीम के कप्तान जी एस रामचंद इन्होने 1959-60 ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भारत की पहली टेस्ट जीत दर्ज की लेकिन दूसरा टेस्ट मैच जोकि कानपुर में था वह आस्ट्रेलिया ने भारत को 119 रनों से हर दिया

लेकिन यह यह भारत की शानदार जीत थी श्रृखला के दौरान भारतीय कप्तान जी एस रामचंद थे इस जीत में जे एम पटेल की पहली पारी में 9 विकेट और दूसरी पारी में पटेल के 5 विकेट और पोली उमरीगर के 4 विकेट की अहम भूमिका रही ।

इसी तरह से भारत के लिए दूसरी पारी में नरीमन कांट्रेक्टर ने 74, आर बी केनी ने 51, आर जी नाडकर्णी ने 46, चंदू बोर्डे ने 44 और अब्बास अली बेग ने 36 रन बनाए|

1961-62 इंग्लैंड और भारत टेस्ट सीरिज:-

यह वह दौर जब भारतीय क्रिकेट टीम पिछले कुछ वर्षों में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर चुका था चाहे बात इंग्लैंड जैसी टीम को मद्रास का मैच हराने की बात हो या फिर ऑस्ट्रेलिया जैस टीम को, यह आत्मविश्वास झलक रहा था इसीलिए भारत ने इंग्लैंड को यहाँ टेस्ट मैच हराया ही नहीं बल्कि इंग्लैंड के खिलाफ अपनी पहली टेस्ट सीरीज़ जीत दर्ज की।

इस श्रृंखला के दौरान नरीमन कॉन्ट्रैक्टर भारतीय कप्तान थे पहले 3 टेस्ट ड्रॉ होने के बाद, भारत ने कलकत्ता में चौथा टेस्ट जीतकर श्रृंखला में 1-0 की बढ़त बना ली |

भारतीय बल्लेबाजी का प्रदर्शन पहली पारी में चंदू बोर्डे ने 68, पटौदी जूनियर ने 64 और विजय मेहरा ने 62 रन बनाए।वहीँ दूसरी पारी में चंदू बोर्डे ने अन्य बल्लेबाजों के उचित योगदान के साथ 61 रन बनाए

टेस्ट मैच की पहली पारी में, सलीम दुरानी ने 47 रन  देकर 4 महत्वपूर्ण बल्लेबाजों को पवेलियन का रास्ता दिखाया इसके साथ- साथ चंदू बोर्डे के 4/65 ने इंग्लैंड को बर्बाद कर दिया

इस तरह भारत ने यह मैच 187 रनों से जीत लिया। भारत ने मद्रास में 2-0 से श्रृंखला जीतने के लिए अंतिम टेस्ट भी जीता।

दुरानी के 10 विकेट से मैच का हॉल और बोर्डे के 5 विकेट मैच ने गेंदबाजी विभाग में भारत की मदद की, तो पटौदी जूनियर के 103, कॉन्ट्रैक्टर के 86, नाडकर्णी के 63 और इंजीनियर के 65 ने भारत को पहली पारी की अच्छी बढ़त दिलाई।

दूसरी पारी में, विजय मांजरेकर ने 85 रन बनाकर इंग्लैंड के लिए एक चुनौतीपूर्ण लक्ष्य निर्धारित किया। भारत ने यह मैच 128 रनों से जीत लिया|

वर्ष 1971 में भारतीय क्रिकेट टीम का नया दौर:-

इस समय टीम कप्तानी अजीत वाडेकर को सौपी गयी वर्ष 1971 में वेस्टइंडीज और इंग्लैंड में सीरीज जीत के साथ फिर से इतिहास के पन्नों में आपना नाम दर्ज कराया सब देशों को यह भी पता था कि कुछ वर्षों के बाद क्रिकेट की बड़ी ट्रोफी की शुरुआत होने वाली है

वहीँ दूसरी तरफ विदेशों में इतने बड़े विरोधियों के खिलाफ एक ही सीजन में सीरीज जीतना भारतीय क्रिकेट में मील का पत्थर माना गया

उस समय भारतीय क्रिकेट के सुपरस्टारों में से एक, सुनील गावस्कर ने 1971 में वेस्ट इंडीज के खिलाफ श्रृंखला में पदार्पण किया।सुनील गावस्कर को उस समय पहली बार सनी के नाम से बुलाया गया जैसा कि वे लोकप्रिय थे, उन्होंने श्रृंखला में खेले गए केवल चार टेस्ट में 774 रन बनाए थे,

क्रिकेट के इतिहास में सुनील गावस्कर का चमत्कार:-

पोर्ट ऑफ स्पेन में एक ही टेस्ट मैच की दोनों पारियों में 124 और 220 बना कर क्रिकेट जगह के महान दिगाजों कोअपने खेल की प्रतिभा का लोहा दिखाना शुरू कर दिया

ऐसे प्रदर्शन की कल्पना कीजिए, जिसमें कोई बल्लेबाज पदार्पण कर रहा हो और उस समय की सबसे ताकतवर क्रिकेट टीम के खिलाफ खेल रहा हो, जो अपने तेज गेंदबाजों के लिए जानी जाती थी।

इसके अलावा, एक ऐसी टीम के लिए खेलना जो जीतने के लिए जानी जाती थी, एक नवोदित खिलाड़ी को पूरी तरह से एक अलग आत्मविश्वास देती है। यह दौर सुनील गावस्कर के जीवन का बहुत महत्वपूर्ण दौर चल रहा था|

भारतीय क्रिकेट टीम में 1983 के वर्डकप की तैयारी:-

जो टीम उस समय के दौर की सीरिज जीतने के लिए लोकप्रिय नहीं थी लेकिन  जिस तरह  से अपनी पहली ही सीरीज में कुछ ऐसा चमत्कार कर दिया जिससे विरोधी टीम को लगने लगा था यह भारत की नयी उर्जावान टीम है

वहीं सुनील गावस्कर के लिए पदार्पण मैच के बाद अपनी टीम को जिताने तक ऐसी इनिंग खेलते हुए इतने सारे रन बनाना और सीरीज में टीम की किस्मत में योगदान देना भारतीय क्रिकेट का पहला सुपरस्टार बनाता ही था

तब भारतीय क्रिकेट को क्रिकेट की दुनिया में भारत का भाग्य बदलने के लिए उनके जैसे खिलाड़ी की आवश्यकता थी उस तरह के खिलाडियों की टीम में इंट्री हो चुकी थी|

सनी ने तेज गेंदबाजों को इस तरह खेला कि लोग मानने लगे कि भगवान ने उन्हें क्रिकेट प्रेमियों का मनोरंजन करने के लिए भेजा है। वह सबसे तेज गेंदबाजों द्वारा फेंकी गई किसी भी गेंद की गति को सहजता से कम कर सकता है। उनकी एकाग्रता क्षमता का कोई मुकाबला नहीं था

भारतीय क्रिकेट के अन्य स्टार खिलाडी:-

यहाँ उन भारतीय क्रिकेट व अन्य स्टार खिलाड़ियों को याद न करना अन्याय है जिनके बिना 1983 विश्व कप की यात्रा संभव नहीं था यहाँ हम उनके पहले दौर के लिए समझते है

वह टीम जो जीतने के लिए लोकप्रिय नहीं थी लेकिन अपनी पहली ही सीरीज में जिस टीम ने खेलते हुए इतने सारे रन बनाना औरउसके बाद सीरीज जितने के साथ-साथ  टीम की किस्मत में योगदान देना उन्हें भारतीय क्रिकेट का पहला सुपरस्टार बनाता है।

जब देश और दुनियां में क्रिकेट का इतिहास बदल रहा था उस समय भारतीय क्रिकेट  टीम को क्रिकेट की दुनिया में ऐसे खिलाडियों की तलास शुरू हो गयी थी जिससे भारत का भाग्य बदल सके|

अंडर 19 और दिलीप ट्रोफी, रणजी ट्रोफी:-

जिस तरह से सुनील गावस्कर ने तेज गेंदबाजों को खेला लोग मानने लगे थे भगवान ने उन्हें क्रिकेट प्रेमियों का मनोरंजन करने के लिए भेजा है। लेकिन उसी दौर में और भी खिलाडियों तलाश के लिए डोमेस्टिक खलों की तरफ ज्यादा धयन दिया जाने लगा क्योंकी सुनील गावस्कर भी रणजी ट्रोफी में अच्छा प्रदर्शन कर के आये थे|

वह सबसे तेज गेंदबाजों द्वारा फेंकी गई किसी भी गेंद की गति को सहजता से कम कर सकता है। उनकी एकाग्रता क्षमता का कोई मुकाबला नहीं है।लेकिन भारतीय क्रिकेट के अन्य स्टार खिलाड़ियों को याद न करना अन्याय है जिनके बिना 1983 विश्व कप की यात्रा संभव नहीं होती. आइए हम सभी पहले पर विचार करें:-

(1970-71 ) भारत, वेस्टइंडीज टेस्ट सीरीज:-

यह उस दौर की बात है जब विदेशी टीमों का जोरों शोरो से क्रिकेट में दबदवा था लेकिन जिस तरह भारत ने इस सीरिज में जीत दर्ज की, इससे ऐसा लगने लगा था भारत भी क्रिकेट में बहुत कुछकर कर सकता है और खास बात यह थी मैच तो जीते ही थे लेकिन मैच के साथ सीरिज भी जीती, यह सीरिज वेस्टइंडीज के खिलाफ भारत की पहली टेस्ट सीरीज जीत थी|

(1977-78) भारत , इंग्लैंड टेस्ट सीरिज:-

इसके बाद इंग्लैंड में भारत ने फिर से वाही कारनामा कर दिखाया जो कारनामा वेस्टइंडीज के खिलाफ किया था और यहाँ पहली टेस्ट जीत और सीरीज जीत यह वर्ष (1977-78) के समय का दौर था  लेकिन यहाँ कप्तान बिशन सिंह बेदी थे

(1979-80) भारत, ऑस्ट्रेलिया टेस्ट सीरीज:-

जिस तरह से भारत ने हाल ही के वर्षों क्रिकेट खेल रहा था उस तरह से भारतीय क्रिकेट बोर्ड को ऐसा लगने लगा था कि था कि टीम में कुछ बदलाव होने चाहिए और इसी लिए  ऑस्ट्रेलिया जाने से पहले भारत के ओपनर बल्लेबाज सुनील गावस्कर को कप्तानी सौंपी गयी

आस्ट्रेलिया जाकर भारतीय बल्लेबाजों ने इस कदर से बल्लेबाजी की, इस टीम को हराकर सीरीज अपने नाम कर ली यह ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भारत की पहली टेस्ट सीरीज जीत थी |

FAQ
भारत के किस कप्तान ने पहली टेस्ट सीरीज जीती ?

कप्तान Ajit Wadekar के समय में भारत ने अपनी पहली सीरीज वर्ष 1970-71 में जीती थी

भारत ने अपने टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में पहली सीरीज कब जीती थी ?

1970-71 में जीती थी

इंग्लैंड के खिलाफ भारत ने पहली टेस्ट सीरीज कब जीती थी ?

कप्तान बिशन सिंह बेदी, वर्ष (1977-78) के समय में भारतीय टीम ने यह सीरिज जीती थी

आस्ट्रेलिया के खिलाफ भारत ने पहली टेस्ट सीरीज कब जीती?

वर्ष 1979-80 में जब भारतीय टीम के कप्तान सुनील गावस्कर थे

भारत ने इंग्लैंड को पहली बार टेस्ट क्रिकेट में कब हराया था ?

वर्ष (1951-52) में इंग्लैंड के खिलाफ भारत की पहली टेस्ट मैच जीत थी इसमें भारतीय टीम के कप्तान विजय हजारे थे

आस्ट्रेलिया के खिलाफ भारत ने पहला टेस्ट कब जीता?

1959-60 में, भारत ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपना पहला टेस्ट जीता इस समय भारतीय टीम के  कप्तान जी एस रामचंद थे |

इंग्लैंड के खिलाफ भारत ने पहली टेस्ट सीरिज कब जीती ?

वर्ष (1961-62) में भारत ने इंग्लैंड के खिलाफ पहली टेस्ट सीरीज जीत इस मसय भारतीय टीम के कप्तान  नरीमन ट्रैक्टर थे |

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